Saturday, December 18, 2010

मैं.....................

बहते पानी की तरह हूँ मैं
कहीं भी टिकती नहीं
रोकने की कोशिश मत करना
तुम रोक नहीं पाओगे .................
अपनी अंजुरी में भर के देख लो
बूँद-बूँद करके छूट जाऊंगी मैं...................
तुम्हें पता भी नहीं चलेगा
तुम्हारी नज़रों से ओझल हो जाऊंगी मैं............

पत्थर भी मिलते हैं मुझेपर वो भी रोक नहीं पाते हैं
या तो खुद ही टूट जाते हैंया फिर उनके बीच रास्ता बना लेती हूँ मैं..................

कभी फूल भी मिला करते हैं मुझे
जो मेरे साथ चलने कि कोशिश करते हैं
पर उनको हौले से किनारे पहुंचाकर
फिर से आगे बढ़ जाती हूँ मैं......................

कभी सुनहरे सूरज की तपिश मिलती है
कभी कंपकंपाती सर्दी का एहसास
कभी तूफानी हवाओं का जोश मिलता है
कभी बारिश की बूंदों का साथ
कुछ समेटते, कुछ बिखराते
कुछ अनचीन्ही यादों में डूबते-उतराते
अंत में समंदर में विलीन हो जाऊंगी मैं

क्योंकि बहते पानी की तरह हूँ मैं.................