Saturday, December 18, 2010

मैं.....................

बहते पानी की तरह हूँ मैं
कहीं भी टिकती नहीं
रोकने की कोशिश मत करना
तुम रोक नहीं पाओगे .................
अपनी अंजुरी में भर के देख लो
बूँद-बूँद करके छूट जाऊंगी मैं...................
तुम्हें पता भी नहीं चलेगा
तुम्हारी नज़रों से ओझल हो जाऊंगी मैं............

पत्थर भी मिलते हैं मुझेपर वो भी रोक नहीं पाते हैं
या तो खुद ही टूट जाते हैंया फिर उनके बीच रास्ता बना लेती हूँ मैं..................

कभी फूल भी मिला करते हैं मुझे
जो मेरे साथ चलने कि कोशिश करते हैं
पर उनको हौले से किनारे पहुंचाकर
फिर से आगे बढ़ जाती हूँ मैं......................

कभी सुनहरे सूरज की तपिश मिलती है
कभी कंपकंपाती सर्दी का एहसास
कभी तूफानी हवाओं का जोश मिलता है
कभी बारिश की बूंदों का साथ
कुछ समेटते, कुछ बिखराते
कुछ अनचीन्ही यादों में डूबते-उतराते
अंत में समंदर में विलीन हो जाऊंगी मैं

क्योंकि बहते पानी की तरह हूँ मैं.................

5 comments:

  1. pallavi ji ,

    bahut koob likha h aapne , itni gahrai kahan se aayi h ,kuch hum ko bhi pata chale. :)

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  2. waw........imaging

    touch my heart.............real feel of nature

    nice Poem di

    g8 going .......2011

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  3. Ma'am I don't know you personally but I just somehow stumbled on your blog. But I after reading one or two of those posts on poetry, I was mesmerized and truly speaking, those will be satiating for any literature enthusiast. I also write on literature sometimes at http://kushalkrdas.blogspot.com/ despite leading a busy schedule at BITS Pilani-Goa. If you find any suitable occasion, please care to visit my site and leave one of your valuable comments. Thank you.

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  4. Sirf tum hi nahi par tumhari kavita bhi behte paani ki tarha hai.. aur iss kavita ka arth boht gehra.. boht sundar aur mann ko chhu jaane wala hai.. yeh kavita sirf tumhara pratiroop nahi batati.. par aise kayi khamosh mann ko vyakt karti.. shayad har jeev pani ki tarha hi hota hai.. aakhir me sabhi ko samader me vilin hona hota hai.. boht sundar pallavi.. bass pani ki tarha aise hi behti raho.. aur kuch bundo ka anand hume bhi lene do.. :)

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  5. "कुछ समेटते, कुछ बिखराते
    कुछ अनचीन्ही यादों में डूबते-उतराते
    अंत में समंदर में विलीन हो जाऊंगी मैं
    क्योंकि बहते पानी की तरह हूँ मैं................."

    बहुत सुन्दर कविता
    दिल को छूती हैं पंक्तियाँ

    आभार

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