Saturday, December 18, 2010

मैं.....................

बहते पानी की तरह हूँ मैं
कहीं भी टिकती नहीं
रोकने की कोशिश मत करना
तुम रोक नहीं पाओगे .................
अपनी अंजुरी में भर के देख लो
बूँद-बूँद करके छूट जाऊंगी मैं...................
तुम्हें पता भी नहीं चलेगा
तुम्हारी नज़रों से ओझल हो जाऊंगी मैं............

पत्थर भी मिलते हैं मुझेपर वो भी रोक नहीं पाते हैं
या तो खुद ही टूट जाते हैंया फिर उनके बीच रास्ता बना लेती हूँ मैं..................

कभी फूल भी मिला करते हैं मुझे
जो मेरे साथ चलने कि कोशिश करते हैं
पर उनको हौले से किनारे पहुंचाकर
फिर से आगे बढ़ जाती हूँ मैं......................

कभी सुनहरे सूरज की तपिश मिलती है
कभी कंपकंपाती सर्दी का एहसास
कभी तूफानी हवाओं का जोश मिलता है
कभी बारिश की बूंदों का साथ
कुछ समेटते, कुछ बिखराते
कुछ अनचीन्ही यादों में डूबते-उतराते
अंत में समंदर में विलीन हो जाऊंगी मैं

क्योंकि बहते पानी की तरह हूँ मैं.................

Monday, October 11, 2010


This is a Modular Origami Stick-tail Peacock. I made it with the help of a video at YouTube.........
First of all, different colored modules or units are made from equal-sized paper pieces and then joined together by interlocking........No glue is used elsewhere except for eyes.........Module making part is a little boring and time consuming, but interlocking is the best part.........However it took me around 4 hrs to complete interlocking........Don't ask about the time taken to make modules............

Friday, October 1, 2010


My 1st Tanjore Painting................

Thursday, September 23, 2010

Made this design taking inspiration from henna designs..........looking nice na????..........;-)

This pen-stand is made out of 5 old waste floppies and decorated with a quilled/husked design and 3-d outliners.

Friday, August 6, 2010

Paper Napkin Holders




These paper napkin holders are made by using waste CDs and ice cream sticks. Decoration is done by ceramic paste cones.

Sunday, August 1, 2010

मैंने धूप को आते देखा...........

चेहरे से सरकते घूंघट-सा,
काले बादलों के बीच सूरज दिखा,
एक उजली किरण आई मेरी तरफ,
और मैंने धूप को आते देखा..........

अलसाई सुबह में आँखें मलते-मलते,
खिड़की खोली मैंने चहचाहट सुनते-सुनते,
घने अँधेरे को चीरते हुए,
मैंने धूप को आते देखा................

सड़क किनारे खड़े किसी इंतज़ार में,
चलती-फिरती दुनिया की भीड़-भाड़ में,समंदर की शांत लहर की तरह,
मैंने धूप को आते देखा................

Tuesday, March 16, 2010