Tuesday, May 20, 2008

Aankhen, Meri Aankhen

आँखें,
मेरी आँखें,
अंजानों की भीड़ में किसी अपने को ढूँढती मेरी आँखें,


किसी चेहरे पे टिकी नज़रें,
तो लगा जैसे की तुम हो,
पुलक उठे कदम उस ओर बढ़ने को,
पर फिर ख्याल आया,
तुम कैसे हो सकते हो,
तुम तो यहाँ हो ही नहीं,
वो चेहरा तो कोई और ही है,


कुछ मायूस हुई आँखें,
लेकिन,
फिर से अनजाने-से लोगों के बीच तुम्हे ढूँढने लगी मेरी आँखें.


दिमाग सतर्क थे,
नज़रें चौकन्नी थी,
दूर-दूर तक अजब-सी शान्ति थी,
उस शान्ति में भी,
जाने क्यूँ मन बेचैन था,


दूर तक देखते हुए भी
शायद तुम्हें ही तलाश रही थी मेरी आँखें,
तुम्हें न सुन पाने की
शायद तड़प थी कानों में,
तुमसे न मिल पाने की
शायद कसक थी आंखों में,


इसीलिए शायद अपनों के बीच
तुम्हें ही ढूँढ रहीं थीं मेरी आँखें..............................

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